अब इस बात पर बहस करने का कोई मतलब नहीं है कि अगर कोरोना के कारण हवाई यातायात बंद नहीं होता तो इरफ़ान खान और ऋषि कपूर की जान बचाई जा सकती थी। ये दोनों ही अभिनेता पिछले दो वर्ष से अमेरिका में अपना इलाज करा रहे थे। संभव है तबियत बिगड़ने पर उन्हें उनके परिजन अमेरिका ही ले जाना पसंद करते। क्योंकि दोनों ही वहाँ से दर्द से मुक्त होकर भारत लौटे थे। बहरहाल जो होना था वह हो चूका है। परंतु इस संभावना ने एक बात सोंचने पर बाध्य किया है।
देश में इस समय 25 लाख कैंसर के मरीज है जो इस बिमारी की अलग अलग स्टेज से गुजर रहे है। भारत में प्रतिवर्ष कैंसर के 8 लाख नए केस सामने आते है। इनमे से कितने ही मरीज ऐसे भी होंगे जो रेडिएशन और कीमो थेरेपी की मदद से मौत के आसन्न संकट से बाहर आने ही वाले होंगे कि कोरोना ने उनकी उम्मीदों पर वज्रपात कर दिया। रेडिएशन और कीमो थेरेपी से गुजरा व्यक्ति सबसे पहले अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता गंवाता है जो कोरोना संक्रमण का काम आसान कर देती है। विडबंना है कि कैंसर से जूझने के लिए सारे अस्पताल सिर्फ और सिर्फ महानगरों में ही स्थित है। इन अस्पतालों में पहुँचने वाले मरीज देश के कोने कोने से आते है। मुंबई के टाटा मेमोरियल अस्पताल में 85 प्रतिशत लोग मुंबई के बाहर से आते है। यातायात का ठहर जाना इन लोगों के लिए त्रासदी बनकर आया है। यह ऐसा रोग है जिसके डॉक्टर गाँव कसबे में नहीं मिलते। इस तरह बड़ी संख्या में लोग दोहरे संकट से गुजर रहे है।
इस समस्या को चीन के उदाहरण से भी समझा जा सकता है। वहाँ मृत्यु के आंकड़ों का विश्लेषण करने से पता चला है कि चालीस प्रतिशत कैंसर पीड़ित कोरोना संक्रमण के शिकार होकर अपने जीवन से हाथ धो बैठे ! लॉक डाउन की बढ़ती उम्र इन रोगियों के जीवन को कम कर रही है। डॉक्टरों का मानना है कि रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने के साथ इन मरीजों में अपने स्वास्थ को लेकर उपजा तनाव भी कैंसर को बढ़ावा देने का काम करता है।
समस्या सिर्फ इतनी नहीं है। महज चार घंटे के अल्टीमेटम से लागू देश व्यापी लॉक डाउन ने गाँव कस्बों के कई हजार लोगों को शहरों में फंसा दिया है। एक तो महंगा इलाज ऊपर से परदेस में रहने का खर्च कई परिवारों के लिए दोहरी मार साबित हो रहा है।
भारत में यह बीमारी हर वर्ष 6 लाख लोगों की जान लेती है। पेंतालिस पचास दिन की तालाबंदी ने कितनो की आयु कम कर दी है - कितनो को इरफ़ान और ऋषिकपूर की गति में पहुंचा दिया होगा ! सहज अनुमान लगाया जा सकता है।
रजनीश जे जैन