अनसुनी आवाजे नजरअंदाज सवाल !


कुछ लोगों का जमीर हमेशा जीवित रहता है। भले ही हवा का रुख उनके खिलाफ बह रहा हो। वे सच कहे बगैर नहीं मानते। राहुल गाँधी की प्रेस कांफ्रेंस में सुझाये गए आर्थिक समाधानों पर सरकार ने कितना संज्ञान लिया , कोई नहीं जानता। उसके बाद देश की महत्वपूर्ण कंपनी बजाज ऑटो के चेयर मेन राहुल बजाज ने भी लॉक डाउन से होने वाले आर्थिक दुष्परिणामों के प्रति आगाह किया लेकिन उनकी बात किस कान तक  पहुंची , किसी को नहीं पता ! अब सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशन धारियों ( इसमें सेना के जवान भी शामिल है ) के महंगाई भत्ते पर बीस माह के लिए रोक  लगा दी है। सुझाव दिए गए थे सरकारी खर्च घटाने के लेकिन त्याग करवाया गया आम जनता से ! सरकार अपनी महत्वकांक्षी ' सेंट्रल विस्टा ' परियोजना को त्यागने को तैयार नही है।


 आकाश वाणी पर समाचार सुनने वाले मित्र इस तथ्य को स्वीकार करेंगे कि जन धन खाता धारकों के खातों में पांच सौ रूपये की राशि प्राप्त करने वालों के साक्षात्कार इस तरह पेश किये जा रहे है मानो उन्हें जिंदगी भर के लिए चिंता मुक्त कर दिया गया हो ! पढ़े लिखे  लोग ( अर्थशास्त्री ) अभी भी सुझाव दे रहे है कि सरकार इस आर्थिक  आपदा को एक अवसर की तरह लेकर अपने देश के नागरिकों को प्रताड़ित किये बगैर भी आर्थिक दुश्चक्र से बाहर आ सकती है। 1991 में जिन सुधारो को लागू किया गया था उनकी धार मंद हो चुकी है। नए ठोस  सुधार लागू करने के लिए इससे बढ़िया मौका नहीं हो सकता। अब समय आ गया है कि जी एस टी की एक दर लागू कर दी जाए और पेट्रोल डीजल को भी इसमें समाहित कर दिया जाए। यहाँ यह जानना भी जरुरी है कि अर्थव्यवस्था को ताली थाली बजाकर दुरुस्त नहीं किया जा सकता क्योंकि इस बात की पूरी संभावना है कि मौजूदा परिस्तिथियों के हिसाब से भारत अगले एक वर्ष में बड़ी कंपनियों और कई बैंकों का कब्रिस्तान बनने वाला है।
कोरोना से पहले ही बेपटरी हो चुकी अर्थव्यवस्था को हर बार सिर्फ रिज़र्व बैंक के आपात कोष को झपट कर दुरुस्त नहीं किया जा सकता। केंद्रीय नेतृत्व को समझना होगा कि भारत की वापसी छोटे उद्योगों और राज्यों की अगुआई में ही होगी।
मोदी की आई टी सेल और भक्तों  को यह बात गंभीरता से समझ लेना चाहिए कि वे एक ऐसे गुब्बारे में तारीफों की हवा भर रहे है जिसकी खुद अपनी एक सीमा है। तर्क कुतर्क से वास्तविकता नहीं बदलती। अब दुनिया में कही ऐसी जगह भी  नहीं बची है जहाँ वे झोला उठाकर निकल ले !
 

रजनीश जे जैन